मुंबई। नए साल में महाराष्ट्र में सरकारी इलाज महंगा होने जा रहा है। शुरुआत मुंबई के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, जेजे अस्पताल से हो रही है। यहां 1 जनवरी 2018 से इलाज से जुड़ीं करीब 1,000 सेवाएं महंगी हो रही हैं. घोषित रूप से तो यह महंगाई 10 से 25% तक होगी, लेकिन महंगाई का यह साझा प्रतिशत होगा यानी कुछ सेवाएँ इस घोषित प्रतिशत से ज्यादा महंगी होंगी।
इस महंगाई का प्रत्यक्ष तर्क तो अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक़ बढ़ती मंहगाई है, लेकिन इसका अप्रत्यक्ष मकसद सरकारी अस्पतालों से आम लोगों की होने वाली भारी भीड़ को कम करना है।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई समेत राज्य के सरकारी अस्पतालों की विभिन्न सेवाओं की फीस में वृद्धि के लिए नवंबर में ही हरी झंडी दिखा दी थी। अब इन अस्पतालों के प्रबंधन अपनी सुविधानुसार शुल्क बढ़ा सकते हैं।
आंतरिक सूत्रों के मुताबिक इसका एक छिपा हुआ मकसद इन अस्पतालों के एक हिस्से को मेडिकल टूरिज्म के साथ जोड़ने की सोच भी है, जिससे ये सरकारी अस्पताल अपने लिए राजस्व पैदा कर सकें।
इस लिहाज से जेजे जैसे अस्पताल से बहुत संभावनाएं हैं; क्योंकि सरकारी अस्पताल होते हुए भी जेजे अस्पताल की मेडिकल कुशलताएँ मुंबई में ही नहीं बल्कि देश के स्तर पर भी सर्वश्रेष्ठ हैं। यहाँ के डॉक्टर मुंबई के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों में शुमार होते हैं। यहाँ जो तमाम सर्जरियां महज 20 हज़ार रुपये से लेकर 3 लाख तक में हो जाती हैं, उन्हीं सर्जरियों के लिए दूसरे अस्पतालों, विशेषकर प्राइवेट अस्पतालों में एक लाख से 12 लाख रुपये तक चार्ज किये जाते हैं। इसलिए प्रबंधन की एक गुपचुप योजना अस्पताल के एक हिस्से को प्राइवेट बनाने की हो रही है। हालाँकि प्रबंधन सार्वजनिक तौर पर यह कह नहीं रहा, लेकिन अस्पताल के सूत्र नाम न छापने की शर्त पर यह बता रहे हैं।
लब्बोलुआब यह है कि 1 जनवरी 2018 से मुंबई का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल और गरीबों के स्वास्थ्य का सबसे बड़ा सहारा 10 से 25% तक महंगा होने रहा है। वैसे प्रबंधन मीडिया को सेवाओं में जितनी वृद्धि बता रहा है वास्तव में सेवाएँ उससे कहीं ज्यादा महंगी होंगी| मसलन जिन कुछ सेवाओं में होने वाली बढ़ोत्तरी का पता चला है वो बताई जा रही दर से काफी ज्यादा है। जिन कुछ सेवाओं की बढ़ोत्तरी के बारे में आंतरिक स्रोतों से पता चला है वह कुछ इस प्रकार है:-
अभी तक अस्पताल में मरीज का रजिस्ट्रेशन 10 रुपये में होता था, अब 20 रुपये में होगा। अभी तक खून की जांच के लिए 30 रुपये लिए जाते थे, अब 250 रुपये तक लिए जायेंगे। इस तरह देखा जाए तो यह बढ़ोत्तरी करीब 800% की होगी।
इसी क्रम में ईसीजी भी अब 30 रुपये की जगह 70 रुपये में होगा। एमआरआई अब 1600 रुपये की जगह 2,000 से 3000 रुपये में होगी।
सोनोग्राफी के लिए भी अब 100 रुपये की जगह 120 रुपये से लेकर 700 रुपये तक लिए जायेंगे, जबकि सीटी स्कैन की वर्तमान दर 350 है जिसे 700 तक किये जाने की योजना है।
दरअसल ये बढ़ने जा रही वो दरें हैं जिनकी अभी तक सार्वजनिक घोषणा नहीं की गयी है। ये अंदर से मिली सूचनाएं हैं। अब चूँकि 1000 सेवाओं में फीस बढ़नी है तो हो सकता है कई सेवाएँ जो बहुत महत्वपूर्ण न हों, उनमें बहुत कम बढ़ोत्तरी हो। इस तरह सबको मिलाकर अंत में जो एक मिलाजुला आंकड़ा तैयार किया जाए वह कम डरावना हो यानी कम महंगा लगे।
मेडिकल शिक्षा एवं शोध निदेशालय (डीएमईआर) की इस बढ़ोत्तरी के लिए तर्क यह है कि पिछले 5 सालों से शुल्क नहीं बढ़ाया गया है, जबकि इस दौरान महंगाई काफी बढ़ गई है। साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में हर किस्म की सेवाओं का शुल्क सरकारी अस्पतालों के मुकाबले बहुत ज्यादा है इसलिए ये बढ़ोत्तरी की गयी है। लेकिन इसके लिए बताये गए तर्क ही काफी नहीं हैं। वास्तव में बढ़ोत्तरी के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि सरकारी अस्पतालों की तमाम सेवाओं का चुपके से निजीकरण भी किया जा रहा है। मसलन नई दिल्ली के एम्स की तरह अब यहाँ भी मरीजों का पंजीकरण ऑनलाइन होने लगा है। जेजे अस्पताल में यह ऑनलाइन व्यवस्था यानी हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी को दी गई है। अभी तक केस पेपर का शुल्क 10 रुपये था। इसमें से 6.75 रुपये एचएमआईएस को और 3.75 रुपये अस्पताल को मिलते थे। अब चूँकि एचएमआईएस सर्विस देने वाली निजी कंपनी पिछले कई सालों से शुल्क बढ़ाने की मांग कर रही थी। इसीलिए इलाज की फीस बढ़ाने का फैसला किया गया है।
गौरतलब है कि जेजे अस्पताल राज्य का ही नहीं बल्कि देश के भी सबसे बड़े चंद अस्पतालों में से एक है। यहां इलाज के लिए देश के कोने-कोने से मरीज आते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार यहाँ आने वाले मरीज सिर्फ महाराष्ट्र से ही नहीं आते बल्कि यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात और कर्नाटक से भी अच्छी खासी संख्या में आते हैं।
जेजे अस्पताल, सेंट जार्ज या जी टी कामा जैसे मुंबई के सरकारी अस्पतालों में आने वाले ज्यादातर मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे में ये बात तो सौ फीसदी तय है कि इलाज के शुल्क में बढ़ोतरी का असर गरीबों पर ही पड़ेगा। यह भी विडम्बना ही है कि अस्पताल प्रबंधन बढ़ती महंगाई का तो तर्क दे रहा है लेकिन इस बात को नहीं समझ रहा है कि इस बढ़ती हुई महंगाई के अनुपात में गरीबों की आय में वृद्धि नहीं हुई है। इस तरह देखा जाय तो यह तर्क गरीबों को दोहरी मार, मार रहा है।
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