'शुरुआत हो चुकी है,
फैज ने कहा कि एक नई शुरुआत हो चुकी है जोकि मुस्लिम महिलाओं को अमानवीय निकाह हलाला से राहत देगी। आपको बता दें कि निकाह हलाला एक ऐसी प्रथा है जिसे तीन तलाक से सुरक्षा देने के लिए अपनाया जाता है, इसके तहत पुरुष अपनी पुरानी पत्नी से फिर से शादी नहीं कर सकता है जबतक कि वह किसी और महिला से निकास नहीं करता और उसके बाद वह उससे अलग होता है जिसे इद्दत कहते हैं।
'सिर्फ तीन तलाक के खिलाफ कानून काफी नहीं,
रिजवाना और रजिया का कहना है कि सरकार को एक से अधिक शादी के मुद्दे को भी उठाना चाहिए और इसी कानून के तहत इसपर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। रिजवाना जोकि खुद इस मुश्किल का सामना कर रही हैं का कहना है कि मैं सरकार के फैसले का स्वागत करती हूं, लेकिन पुरुष इसका नाजायज फायदा उठाएंगे और खुले तौर पर एक से अधिक शादी करेंगे, जबतक एक से अधिक शादी की प्रथा मौजूद है तबतक अकेले तीन तलाक के खिलाफ बिल से राहत नहीं मिल सकती है।
'कई लोगों की जिंदगी बर्बाद,
रजिया जिनके पति ने उन्हें फोन पर तलाक दे दिया था क्योंकि उन्होंने लड़की को जन्म दिया था, उन्होंने भी तीन तलाक के फैसले का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि इससे महिलाओं को इंसाफ मिलेगा। महज 16 वर्ष की आयु में रजिया का निकाह हो गया था, उनका कहना है कि तीन तलाक एक अपराध है जिसने कई लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी है, मैं प्रार्थन करती हूं कि सभी महिलाओं को इस कानून से न्याय मिलेगा, मैं प्रार्थना करती हूं कि एक से अधिक शादी की भी प्रथा खत्म हो।
'चार शादी के खिलाफ हो कानून,
पेशे से वकील चंद्रा राजन का कहना है कि तीन तलाक के खिलाफ कानून इतिहास में दर्ज होगा। उनका कहना है कि अगर यह नया कानून सही मायने में लागू हुआ तो यह बहुत ही कारगर साबित होगा और महिलाओं को तीन तलाक जैसी कुप्रथा से बचाएगा। ऑल इंडिया मुस्लिम वीमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की वकील चंद्रा का कहना है कि वह शुरुआत से ही इस बात की मांग कर रही हैं कि एक से अधिक शादी करने के खिलाफ कानून होना चाहिए और ऐसा करने वाले पतियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए।
'मुस्लिल पर्सनल लॉ बोर्ड एक एनजीओ,
चंद्रा कहती हैं कि मैं सिर्फ एक ही बात से निराश हूं कि सरकार ने शरियत को परिभाषित नहीं किया है, जबतक शरियत की परिभाषा नहीं निर्धारित की जाती है, तबतक भ्रम की स्थिति रहेगी, ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सरकार यह कानून जल्दबाजी में लेकर आई है। बेहतर होता कि कानून में यह कहा जाता कि नाबालिग बच्चे को मां की कस्टडी में सौंपा जाएगा। वहीं उन्होंने कहा कि जिस तरह से कानून में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जिक्र किया गया है उसने उन्हे एक स्वीकार्यता मिलती है, जबकि वह सिर्फ एक एनजीओ है। वहीं फैज का कहना है कि सरकार को एक से अधिक शादी को भी अवैध करार देना चाहिए था जिससे की लाखों महिलाओं को इससे राहत मिलती। उनका कहना है कि कम से कम सरकार ने कुछ तो किया और इसकी शुरुआत हुई, इसमे संशोधन बाद में हो सकता है। उनका कहना है कि सरकार को सजा की अवधि को बढ़ाना चाहिए था, इसे तीन वर्ष से बढ़ाकर सात साल किया जाना चाहिए था.
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