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2 G केस में फैसले के बासांप-छछूँदर वाली हालत में बीजेपी..



नई दिल्ली: सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन केस में डीएमके के नेताओं ए. राजा और कनिमोझी के बरी हो जाने के बाद बीजेपी की हालत सांप-छछूंदर वाली हो गई है। इन दोनों नेताओं के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने से बीजेपी हो सकता है कि 2019 के आम चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके के रूप में एक संभावित सहयोगी से हाथ धो बैठे, वहीं नरम रुख दिखाए तो करप्शन के खिलाफ उस हल्ले पर वह क्या कहेगी, जिसके जरिए 2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए। बीजेपी ने हाल के महीनों में डीएमके की ओर हाथ बढ़ाया है। ऐसा 2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में एक सहयोगी जुगाड़ने के प्लान के तहत किया गया है। जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके ही बीजेपी की पहली पसंद थी और उसने उसके दोनों धड़ों से गांठ जोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों में एआईएडीएमके को लेकर मन खट्टा होने के बाद मोदी ने डीएमके की ओर हाथ बढ़ाया था। पीएम नवंबर में डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि का हालचाल लेने के लिए गए थे, लेकिन संदेश बिल्कुल साफ था।
इन हालात में बीजेपी आने वाले महीनों में इस केस के हाई कोर्ट में जाने पर 'कानून अपना काम करेगा' का राग अलाप सकती है। रॉबर्ट वाड्रा केस में वह पहले ही यह रुख अपना चुकी है। यह केस बीजेपी शासित राजस्थान और हरियाणा में आगे बढ़ ही नहीं रहा, जबकि लोकसभा चुनाव में वाड्रा केस पर काफी गला फाड़ा गया था। ऐसा लग रहा है कि ये मामले अब बीजेपी चुनाव प्रचार में ही उठाएगी। हालांकि बीजेपी के लिए बड़ी चिंता यह है कि 2जी केस में नरमी दिखाना वोटरों में गलत छवि बना सकता है, क्योंकि 2014 में पार्टी ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। बीजेपी नेता मान रहे हैं कि अदालत के फैसले ने कांग्रेस को पलटवार करने का मौका दे दिया है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि यह सब कुछ वक्त की बात है क्योंकि ऊपरी अदालतें इस फैसले को पलट देंगी। एक केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'यह कुछ दिनों की चांदनी है।' हालांकि यह मामला अदालतों में महीनों तक खिंच सकता है।
इस बीच, कांग्रेस ने तुरंत ही मेसेज दिया कि वह अपने पुराने सहयोगी के साथ है। उसके सीनियर नेताओं गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने जहां कनिमोझी का स्वागत किया, वहीं कपिल सिब्बल ने कहा कि जीरो लॉस थ्योरी सही साबित हुई। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के पक्ष में बदलते सियासी माहौल और तमिलनाडु में बीजेपी की कोई खास मौजूदगी न होने को देखते हुए डीएमके पाला नहीं बदलेगी। ऐसा होने पर नए सहयोगी जोड़ने के बीजेपी के प्लान पर असर पड़ेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए वह साउथ इंडिया और नॉर्थ ईस्ट में नए सहयोगी तलाश रही है। उसे पता है कि यूपी, बिहार, राजस्थान और यहां तक कि गुजरात में पिछले लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा। कांग्रेस के उभार ने हालात और मुश्किल कर दिए हैं.

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