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रायगड़ में रोमांचक मुकाबला, शिवसेना-एनसीपी आमने- सामने




रायगड। रायगड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं है। कोलाबा लोकसभा से निकले रायगड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर्यटन, कृषि और उद्योग के विकास की असीम संभावनाएं हैं। धान के कटोरे के रूप में इस लोकसभा की एक विशेष पहचान है। राजनीतिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र में भले ही शिवसेना के अनंत गीते की जीत हुई है लेकिन शरद पवार की एनसीपी मजबूत उभरकर सामने आई है।
पिछले चुनाव में शिवसेना के अनंत गंगाराम गीते और एनसीपी के सुनील दत्तात्रय तटकरे के बीच कांटे की टक्कर हुई थी। शिवसेना के गीते मात्र 2,110 मतों से विजयी हुए थे। त्रिकोणीय मुकाबले में इस बार शेतकरी कामगार पक्ष मैदान में नहीं है। इस बार एनसीपी के साथ एसकेपी खड़ी है और दोनों ही उम्मीदवार फिर से मैदान में डट गए हैं, इसलिए घमासान होना तय है।
लोकसभा का इतिहास
कोलाबा क्षेत्र कभी मराठा राजाओं की राजधानी हुआ करता था। मशहूर किले इसी लोकसभा चुनाव क्षेत्र में आते हैं। समुद्र के बेहतरीन पर्यटन स्थल भी इसी लोकसभा क्षेत्र में हैं। हां, यह अलग बात है कि इसका विकास नहीं किया गया। शिवसेना के अनंत गीते 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 लगातार जीतते रहे। इस कार्यकाल में, तो वे केंद्र में मंत्री भी बने लेकिन अपने चुनाव क्षेत्र में कोई भारी भरकम उद्योग नहीं लगा सके और पर्यटन स्थलों के विकास को भी राम भरोसे छोड़ दिया। आम उद्योगपतियों ने जो विकास किया, वह अपने दम और अपने पैसे से किया है। गीते को शिवसेना ने छठीं बार अवसर दिया है। पिछली बार तो गीते हारते-हारते बच गए थे।

रायगड की जंग
पांच साल का कार्यकाल
शिवसेना के वरिष्ठ सांसद अनंत गीते मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में उद्योग और सार्वजनिक उद्यम विभाग के मंत्री रहे। अपने चुनाव क्षेत्र को नए सिरे से निखारने का उनके भरपूर अवसर था, लेकिन उन्होंने मौका गंवा दिया। मंत्री बनने के बाद मतदान क्षेत्र से उनकी दूरी बढ़ गई। अब उनकी नैया शिवसेना और बीजेपी के लोग की पार लगाएंगे। अलीबाग, पेण, महाड, श्रीवर्धन, दापोली और गुहागर जैसा हरियाली से परिपूर्ण और समुद्र तटीय क्षेत्र है, जहां विकास की असीम संभावनाएं है। उद्योग लगाने के लिए भी भरपूर अवसर है।
स्थानीय निकाय पर मिलाजुला गणित
रायगड के स्थानीय निकायों पर मिलाजुला कब्जा बै। शिवसेना, एनसीपी और एसकेपी हमेशा से ही इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। विधानसभा के चुनाव नतीजों ने शिवसेना के गीते को पहले ही चेतावनी दे दी थी। छह लोकसभा वाले चुनाव क्षेत्र में तीन एनसीपी और दो सीट पर एसकेपी का कब्जा है, जबकि एक सीट पर शिवसेना है। केंद्र व राज्य की सत्ताधारी बीजेपी का कोई अतापता नहीं है। एनसीपी के भास्कर जाधव और सुनील तटकरे जैसे दिग्गज नेता हैं और एसकेपीा के जयंत पाटील का प्रभाव है। स्थानीय निकायों की बात करें, तो मिलाजुला मामला है। हर जिले के छत्रप नेता हैं, जो स्थानी निकाय के चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। उन्हीं का असर यहां के स्थानीय निकायों पर है।
रोमांचित करने वाली टक्कर
पिछली बार रायगड सीट एनसीपी की छोली में आते-आते रह गई। इसका मलाल एनसीपी के उम्मीदवार सुनील तटकरे को आज भी है। मुलाकात के दौरान जब भी लोकसभा चुनाव का जिक्र होता उनके चेहरे पर वह मलाल देखा जा सकता था। महज 2,110 मतों की हार वह भूल नहीं पाते। इस बार उन्होंने अपने पुराने दुश्मन गीते को टक्कर देने के लिए किसी तरह की कोर कसर नहीं छोड़ी है। उन्हें एसकेपी को अपनी तरफ मिला लिया है।
1.08 लाख मतदाता बढ़े
चुनाव आयोग के अनुसार, 31 जनवरी 2019 में रायगड लोकसभा चुनाव क्षेत्र में कुल 16 लाख 37 हजार 853 मतदाता दर्ज हैं, जबकि पिछले साल चुनाव में 15 लाख 29 हजार 728 मतदाता थे। यानी पिछले चुनाव और इस चुनाव में एक लाख आठ हजार 125 मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। बढ़े हुए मतदाता जिस तरफ जाएंगे उसका पलड़ा भारी होगा।
जातिगत समीकरण
अन्य लोकसभा मतदान क्षेत्रों की तरह ही रायगड सीट पर जातियों का समीकरण भारी है। प्रमुख रूप से आगरी, मराठा, धनगर (गवली) और कुणबी जातियों का खासा प्रभाव है। इनके अलावा दलितों व मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी उतनी है, जो चुनाव नतीजे को प्रभावित करते हैं। कांग्रेस और एनसीपी के कभी परंपरागत वोट बैंक दलित समुदाय रहा है। उस समुदाय को रामदास आठवले वाली आरपीआई अनंत गीते को मजबूत बना रही है।

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