सांकेतिक तस्वीर
मुंबई। आर्थिक अपराध शाखा यानी ईओडब्ल्यू अब 6 करोड़ रुपये से ऊपर के केसों की ही जांच करेगी। इससे नीचे के सारे मामलों की पुलिस स्टेशन लेबल पर ही जांच होगी। आर्थिक अपराध शाखा के जॉइंट सीपी विनय चौबे ने सोमवार को यह जानकारी दी। चौबे के अनुसार उन्होंने मुंबई सीपी सुबोध जायसवाल को इस बारे में एक प्रस्ताव पिछले महीने भेजा था। सीपी ने इसे अपनी मंजूरी दे दी है।
अभी तक EOW 3 करोड़ रुपये से ऊपर के केस की ही जांच करती थी। कई साल पहले EOW के पास 10 लाख रुपये से ऊपर के धोखाधड़ी के केस आते थे। बाद में रकम 50 लाख रुपये कर दी गई। साल 2014 में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर से अनुरोध किया गया कि इस रकम को 3 करोड़ रुपये से ऊपर किया जाए। अब चार साल बाद इस राशि को डबल कर दिया गया है।
EOW के अधिकारियों के पास काम का बहुत लोड
EOW से जुड़े एक अधिकारी ने एनबीटी से कहा कि मुंबई में अब एक फ्लैट की कीमत ही 6 करोड़ रुपये के आसपास होती है। ऐसे में इस तरह के मामलों की जांच के बजाए हम अब क्वॉलिटी वाले केसों पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है ,जबकि EOW के पास जांच की पूरी फोर्स ही सवा सौ से ज्यादा की नहीं होगी। EOW के अधिकारियों के पास काम का बहुत लोड है।
अधिकारी ने कहा कि सीबीआई में एक जांच अधिकारी के पास दो से तीन ही केस होते हैं, जबकि EOW में एक-एक अधिकारी 20-20 केस की जांच कर रहा है। सीबीआई में डीसीपी रैंक का अधिकारी अधिकतम 20 से ज्यादा केस सुपरवाइज नहीं करता। मुंबई पुलिस के EOW के पास दो डीसीपी हैं-राजीव जैन और पराग मनेरे। ये दोनों इस वक्त 624 केस को सुपरवाइज कर रहे हैं। ज्यादा केसों से निश्चित ही उनकी जांच की क्वॉलिटी पर असर पड़ता है।
चार साल पहले अलग हुआ EOW,
पहले EOW मुंबई क्राइम ब्रांच के जॉइंट सीपी के अंडर में आती थी। देश की आर्थिक राजधानी में बढ़ते अपराधों की वजह से 4 साल पहले सरकार ने इसे मुंबई क्राइम ब्रांच से अलग कर दिया और धनंजय कमलाकर को EOW का पहला जॉइंट सीपी बनाया। EOW के अंडर में करीब एक दर्जन यूनिट्स काम करती हैं। पहले EOW को साइबर सेल भी मिला हुआ था। अब इस सेल को बंद कर दिया गया है और उससे जुड़े अधिकारियों को EOW में ही समाहित कर दिया गया है। जब किसी केस में EOW अधिकारियों को साइबर एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है, तो साइबर सेल से मदद मांगी जाती है।
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