नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा, पुराना फैसला उस वक्त के तथ्यों के मुताबिक था. मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. पूरे मामले को बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा'. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने 2 के मुकाबले 1 मत से फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण की राय इस मामले में एक थी, लेकिन तीसरे जज जस्टिस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से अलग राय रखी.
जस्टिस भूषण ने कहा कि 'फैसले में दो राय, एक मेरी और एक चीफ जस्टिस की, दूसरी जस्टिस नजीर की. जस्टिस अब्दुल नजीर ने इस फैसले से असहमति जताई. उन्होंने फैसले पर अपनी राय देते हुए कहा, इस मामले में पुराने फैसले में सभी तथ्यों पर विचार नहीं किया गया. मस्जिद में नमाज पर दोबारा विचार की जरूरत है. इसके साथ ही इस मामले को बड़ी बैंच को भेजा जाना चाहिए.
जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.
मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी.
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