Skip to main content

जाँनी वाँकर को अभिनेता बनने के लिए करना पड़ा था कड़ा संघर्ष...



मुंबई। बॉलीवुड में अपने जबरदस्त कॉमिक अभिनय से दर्शकों के दिलों में गुदगुदी पैदा करने वाले हंसी के बादशाह
जॉनी वॉकर को बतौर अभिनेता अपने सपनों को साकार करने के लिये बस कंडक्टर की नौकरी भी करनी पड़ी थी। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर मे एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार मे जन्मे बदरूदीन जमालुदीन काजी उर्फ जॉनी वाकर बचपन के दिनों से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। वर्ष 1942 मे उनका पूरा परिवार मुंबई आ गया।
मुंबई में उनके पिता के एक जानने वाले पुलिस इंस्पेकटर थे जिनकी सिफारिश पर जॉनी वाकर को बस कंडकटर की नौकरी मिल गयी। इस नौकरी को पाकर जॉनी वाकर काफी खुश हो गये क्योंकि उन्हे मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने का मौका मिल जाया करता था। इसके साथ ही उन्हें मुंबई के स्टूडियो में भी जाने का मौका मिल जाया करता था। जॉनी वाकर का बस कंडक्टरी करने का अंदाज काफी निराला था। वह अपने विशेष अंदाज मे आवाज लगाते माहिम वाले पैसेन्जर उतरने को रेडी हो जाओ लेडिज लोग पहले।
इसी दौरान जॉनी वाकर की मुलाकात फिल्म जगत के मशहूर खलनायक एन.ए.अंसारी और के आसिफ के सचिव रफीक से हुयी। लगभग सात आठ महीने के संघर्ष के बाद जॉनी वाकर को फिल्म अखिरी पैमाने में एक छोटा सा रोल मिला। इस फिल्म में उन्हें पारिश्रमिक के तौर पर 80 रुपये मिले जबकि बतौर बस कंडक्टर उन्हें पूरे महीने के मात्र 26 रुपये ही मिला करते थे। एक दिन उस बस में अभिनेता बलराज साहनी भी सफर कर रहे थे।
वह जॉनी वाकर के हास्य व्यंग के अंदाज से काफी प्रभावित हुये और उन्होंने जॉनी वाकर को गुरुदत्त से मिलने की सलाह दी। गुरुदत्त उन दिनों बाजी नामक एक फिल्म बना रहे थे। गुरुदत्त ने जॉनी वाकर की प्रतिभा से खुश होकर अपनी फिल्म बाजी में काम करने का अवसर दिया। वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म .बाजी. के बाद जॉनी वाकर बतौर हास्य कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। फिल्म बाजी के बाद वह गुरुदत्त के पसंदीदा अभिनेता बन गये। उसके बाद जॉनी वाकर ने गुररुदत्त की कई फिल्मों में काम किया जिनमें आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा, चौदहवी का चांद, कागज के फूल जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल है।
नवकेतन के बैनर तले बनी फिल्म टैक्सी ड्राइवर में जॉनी वाकर के चरित्र का नाम .मस्ताना. था। कई दोस्तों ने उन्हें यह सलाह दी कि वह अपना फिल्मी नाम मस्ताना ही रखे लेकिन जॉनी वाकर को यह नाम पसंद नहीं आया और उन्होंने उस जमाने की मशहूर शराब .जॉनी वाकर. के नाम पर अपना नाम जॉनी वाकर रख लिया।
वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म 'मधुमति' का एक दृश्य जिसमें वह पेड़ पर उलटा लटक कर लोगों को बताते हैं कि दुनिया ही उलट गयी है ,आज भी सिने दर्शक नहीं भूल पाये हैं। इस फिल्म के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावे वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म'शिकार'के लिये जॉनी वाकर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये। 70 के दशक मे जॉनी वाकर ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि फिल्मों मे कामेडी का स्तर काफी गिर गया है।
इसी दौरान ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म 'आनंद' में जॉनी वाकर ने एक छोटी -सी भूमिका निभायी। इस फिल्म के एक दृश्य में वह राजेश खन्ना को जीवन का एक ऐसा दर्शन कराते है कि दर्शक अचानक हंसते-हंसते संजीदा हो जाता है। वर्ष 1986 में अपने पुत्र को फिल्म इंडस्ट्री मे स्थापित करने के लिये जॉनी वाकर ने फिल्म'पहुंचे हुये लोग'का निर्माण और निर्देशन भी किया। लेकिन बॉक्स आफिस पर यह फिल्म बुरी तरह से नकार दी गयी। इसके बाद जॉनी वाकर ने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली।
इस बीच उन्हें कई फिल्मों में अभिनय करने के प्रस्ताव मिले जिन्हें जॉनी वाकर ने इंकार कर दिया लेकिन गुलजार और कमल हसन के बहुत जोर देने पर वर्ष 1998 मे प्रदर्शित फिल्म 'चाची 420' में उन्होंने एक छोटा- सा रोल निभाया जो दर्शको को काफी पसंद भी आया। जानी वाकर ने अपने अपने पांच दशक के लंबे सिने कैरियर मे लगभग 300 फिल्मों में काम किया।अपने विशिष्ट अंदाज और हाव भाव से लगभग चार दशक तक दर्शकों का मनोरंजन करने वाले महान हास्य कलाकार जॉनी वाकर 29 जुलाई 2003 को इस दुनिया से रूख्सत हो गये।- पुण्यतिथि विशेष.।

Comments

Popular posts from this blog

आँनलाइन फार्मेसी के खिलाफ आज दवा दुकानदार हड़ताल पर

मुंब्रा। ई-कॉमर्स से दवा बिक्री होने के खिलाफ आज शुक्रवार को देशभर के दवा दुकानदार हड़ताल पर रहेंगे। इस हड़ताल में दिल्ली में मौजूद 12 हजार से अधिक दवा विक्रेता शामिल होंगे। हालांकि, अस्पतालों में स्थित दवा दुकानों को हड़ताल से बाहर रखा गया है। दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के खिलाफ दुकानदारों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करने की भी तैयारी की है। इस बारे में ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (एआइओसीडी) के अध्यक्ष जेएस शिंदे ने प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा कि केंद्र सरकार ने इंटरनेट के जरिये दवाओं की बिक्री यानी ई-फार्मेसी को मंजूरी दे दी है। सरकार के इस कदम के खिलाफ 28 सितंबर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है। इस हड़ताल में देशभर के 7 लाख खुदरा व 1.5 लाख थोक दवा दुकानदार शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि इन साढ़े आठ लाख दुकानों से करीब 40 लाख स्टॉफ जुड़े हैं। इसके अलावा 1.5 से 2 करोड़ औषधि प्रतिनिधि भी हड़ताल में शामिल होंगे, क्योंकि ऑनलाइन फार्मेसी से इनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। एआइओसीडी के महासचिव राजीव सिंघल ने कहा कि सवाल मात्र व्

महाराष्ट्र दिवस: 1960 में आया था महाराष्ट्र अस्तित्व में: जानिए इसका इतिहास

 मुंबई। देश के राज्यों के भाषायी पुनर्गठन के फलस्वरूप एक मई, 1960 को महाराष्ट्र राज्य का प्रशासनिक प्रादुर्भाव हुआ था। यह राज्य आसपास के मराठी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया, जोकि पहले चार अलग-अलग प्रशासनों के नियंत्रण में थे। इनमें मूल ब्रिटिश मुंबई प्रांत में शामिल दमन और गोवा के बीच का जिला, हैदराबाद के निजाम की रियासत के पांच जिले, मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश) के दक्षिण आठ जिले तथा आसपास की ऐसी अनेक छोटी-छोटी रियासतें शामिल थीं, जो समीपवर्ती जिलों में मिल गईं थीं। महाराष्ट्र प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर में बसा हुआ है और भौगोलिक दृष्टि से एक समान है। यहां का मुंबई बंदरगाह अरब सागर का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है। भौतिक दृष्टि से यह राज्य मुख्यतः पठारी है। महाराष्ट्र पठारों का पठार है। इसके उठे हुए पश्चिमी किनारे सह्याद्रि पहाड़ियों का निर्माण करते हैं और समुद्र तट के समानांतर हैं तथा इसकी ढलान पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व की ओर धीरे-धीरे बढ़ती है। राज्य के उत्तरी भाग में सतपुड़ा की पहाड़ियां हैं, जबकि अजंता तथा सतमाला पहाड़ियां राज्य के मध्य भाग से होकर जाती हैं। अरब सागर महाराष्ट्र

महाराष्ट्र से वापस लौट सकेंगे प्रवासी मजदूर,डीएम की अनुमति होगी जरूरी

मुंबई। लॉकडाउन की वजह से देशभर में लॉकडाउन लागू है. अलग-अलग राज्यों के मजदूर और लोग दूसरे राज्यों में फंस गए हैं. महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख गुरुवार को कहा कि प्रवासी और अन्य फंसे हुए लोग अपने-अपने राज्यों में जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति के बाद वापस लौट जाएंगे. जिला मजिस्ट्रेट ही प्रवासी मजदूरों को वापस भेजने के लिए नोडल अधिकारी की भूमिका में होंगे. लोगों को नाम, मोबाइल नंबर, गाड़ियों का विवरण(अगर हो तो), राज्य में अकेले हैं या साथ में हैं, इन सबका क्रमवार ब्यौरा देना होगा. महाराष्ट्र में लॉकडाउन की घोषणा के बाद लगभग 6 लाख मजदूर फंसे हैं. ये मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा के हैं. इस वक्त इन मजदूरों के रहने-खाने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार पर है. हालांकि कुछ मजदूर अपने गृह राज्य जाने की मांग कर रहे हैं. अब गृह मंत्रालय की ओर से जारी नई गाइडलाइन के मुताबिक मजदूर अपने राज्यों को लौट सकेंगे. राज्य इसके लिए तैयारी कर रहे हैं. दरअसल बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों की मांग के बाद गृह मंत्रालय ने अलग-अलग स्थानों पर फंसे हुए प्रवासी मजदूरों, लोगों और