मुंबई। दिल्ली में अवैध निर्माण के संबंध में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इसके जिम्मेदार बिल्डरों, कांट्रैक्टरों और आर्कीटेक्टों के नाम काली सूची में डालने के दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप दिया गया है। केंद्र सरकार ने जस्टिस मदन बी लोकुर, एस. अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की खंडपीठ को बताया कि राज्यों को इस संबंध में एक एडवाइजरी भेजी गई है। ताकि वह अपने क्षेत्रों में हो रहे अवैध निर्माण के प्रति सावधानी भरे कदम उठा सके। खंडपीठ ने केंद्र की ओर से अदालत में पेश एडीशनल सालीसिटर जनरल (एएसजी) एएनएस नाडकर्णी से यह जानने की कोशिश की है कि मुंबई की बहुमंजिला इमारत में हाल में लगी आग के आधार पर एडवाइजरी राज्यों को भेजी गई है या नहीं। इस पर एएसजी ने कहा कि मुंबई के परेल इलाके के अग्निकांड के पहले ही एडवाइजरी भेजी जा चुकी है। मुंबई में ऐसी कई इमारतें हैं जहां अग्निशमन दल पहुंच भी नहीं पाता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में अवैध निर्माण को लेकर बिल्डरों, कांट्रैक्टरों और आर्कीटेक्टों के नाम काली सूची में डालने को लेकर दिशा-निर्देश सर्वोच्च अदालत की 18 जुलाई के निर्देशों के आधार पर किए गए हैं। एएसजी ने कहा कि जब कोर्ट इन दिशा-निर्देशों को मंजूरी दे देगा तो वह उसे सार्वजनिक कर देंगे। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से भी यह जानना चाहा कि अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर उनके पास नागरिकों की कितनी शिकायतें मोबाइल एप्लीकेशन से आती हैं।
डीडीए की ओर से पेश एएसजी मनिंदर सिंह ने कहा कि उन्हें मोबाइल एप्लीकेशन पर 1748 शिकायतें मिल चुकी हैं। उन शिकायतों पर उचित कार्रवाई की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि वह कोर्ट के समक्ष पूरे आंकड़े और जगहों के नाम पेश करेंगे। इस पर खंडपीठ ने दिल्ली की डिजिटल मैपिंग की स्थिति जाननी चाही। इस पर सिंह ने कहा कि इस संबंध में स्थानीय निकायों से बातचीत शुरू हो चुकी है। नेशनल इंफोरमैटिक सेंटर और इसरो के भी संपर्क में हैं। इस समय दिल्ली को डिजिटल मैपिंग से कवर किया जा सकता है। ध्यान रहे डिजिटल मैपिंग वह आंकड़े हैं जिनकी मदद से किसी क्षेत्र की सटीक वर्चुअल इमेज बनाई जाती है।
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