भीमा- कोरेगांव कनेक्शन वाले पांच एक्टिविस्ट: कोई अमेरिका में जन्मा, तो कोई यूनिवर्सिटी में रह गोल्ड मैडलिस्ट
नई दिल्ली। भीमा-कोरेगांव हिंसा से कनेक्शन बताते हुए महाराष्ट्र पुलिस की पुणे ईकाई ने देशभर के अलग-अलग शहरों से पांच एक्टिविस्स्टों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार इन पांचों के एक्टिविस्टों के हिंसा में संलिप्त माओवादियों से जुड़ाव है। इनकी गिरफ्तारी जून में दलित एक्टिविस्ट सुधीर धावले, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, एक्टिविस्ट महेश राऊत, शोमा सेन, रोना विल्सन की गिरफ्तारियों के बाद हुई है। बताया जा रहा है कि इन पांचों एक्टिविस्टों के पहले हुई गिरफ्तारियों से संबंध है। आइए इन पांचों एक्टिविस्टों की पृष्ठिभूमि जानते हैं। ये पांचों समाजसेवा क्षेत्र में काफी सक्रिय और बेहद पढ़े-लिखे, अपने-अपने विषयों के स्कॉलर और विषय विशेष में गोल्ड मैडलिस्ट भी रहे हैं।
दिल्ली नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं सुधा भारद्वाज,
सुधा भारद्वाज का जन्म अमेरिका में हुआ है। 11 साल की उम्र में वह भारत लौटीं और 18वें साल में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी। सुधा ने आईआईटी कानपुर से गणित की पढ़ाई की। सुधा ने रायपुर एक कॉलेज से कानून की पढ़ाई 2000 में पूरी की। इससे पहले ही वह 1986 में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़ गई थीं और मजदूरों से संबंधित प्रदर्शन आदि में जाने लगी थीं। लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी वकालत भी शुरू कर दी थी। साल 2007 से वह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वकालत करने लगी थीं। बाद में उन्हें दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया था। इसके बाद वह फरीदाबाद में रहने लगी थीं।
लेकिन उनका कर्मक्षेत्र छत्तीसगढ़ रहा है। उन्होंने वहां दशकों तक सिविल राइट्स कार्यकर्ता के तौर पर जनजातियों और दलितों के लिए काम किया है। उनको छत्तीसगढ़ में पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की महासचिव भी नियुक्त किया गया था। सुधा को छत्तीसगढ़ में आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, भूमि अधिग्रहण, वन अधिकार और पर्यावरण के लिए काम करने के लिए जाना जाता है।
मुंबई यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल विनर रहे हैं वर्नोन गोनसाल्वेज,
भीमा कोरेगांव कनेक्शन में गिरफ्तार किए गए एक्टिविस्ट वर्नोन गोनसाल्वेज मुंबई यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स के स्कॉलर रहे हैं। यहां पढ़ाई के दौरान वह गोल्ड मैडलिस्ट भी रहे। इसके बाद उन्होंने पढ़ाना शुरू किया। वह मुंबई में ही एक बिजनेस कॉलेज में लेक्चरर पद पढ़ाने लगे। इसके बाद वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगे। बाद में उन्हें नक्सल गतिविधियों में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें करीब 6 साल तक जेल में रखा गया। लेकिन कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया।
लेखक हैं अरुण परेरिया, जेल के अनुभवों पर किताब है बेहद मशहूर,
अरुण परेरिया मुंबई में पले-बढ़े हैं। उन्होंने यही से उच्च शिक्षा हासिल की। इसके बाद समाजिक क्षेत्र में जुड़ गए। वह कई सालों तक नागरिक अधिकारों के लिए कई तरह के प्रदर्शन और ऐसी गतिविधियों से जुड़े रहे। लेकिन साल 2009 में उन्हें महाराष्ट्र की एंटी नक्सल सेल ने नक्सलियों से संबंध रखने के आधार पर गिफ्तार किया। इसके करीब 5 सालों तक उन्हें जेल में बंद रखा गया। जब वे बाहर आए तो अपनी किताब ‘कलर्स ऑफ दि केज: ए प्रिजन मेमॉयर’ के साथ आए। अरुण परेरिया ने जेल में रहने के दौरान अपने अनुभवों पर एक पूरी किताब किताब लिख दी। बाहर आने के बाद उनकी किताब बेहद चर्चित हुई।
कवि, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मशहूर हैं पी वरवर राव,
पी वरवर राव, तेलंगाना के रहने वाले हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश से ही उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद अध्यापन के दिशा में आगे बढ़े। वे कई सालों तक विश्वविद्यालयों में स्नातक दर्जे तक के छात्रों को पढ़ाते रहे। इसी बीच उन्होंने तेलगू साहित्य का अध्ययन किया और लेखन में सक्रिय हो गए। उनकी पहचान मार्क्सवादी आलोचल के तौर पर बनी। उन्होंने कई कविताएं, लेख आदि लिखे। उन्हें कई बार उनकी सरकार की कटु आलोचना को लेकर सुर्खियां मिलती थीं। इसके अलावा कई प्लेटफॉर्म पर वे भाषण देने भी जाते थे। इसके लिए भी उनको कई बार भर्तस्ना का शिकार होना पड़ता था। टाइम्स नॉऊ की एक खबर के मुताबिक आंध्र प्रदेश सरकार ने एक बार 1973 में भी इनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। तब उन्हें महीनेभर जेल में भी रखा गया था। जबकि भारत में 1976 आपातकाल के दौरान मीसा के तहत भी गिरफ्तार किया गया था।
अर्थशास्त्र के स्कॉलर और दिग्गज पत्रकार हैं गौतम नवलखा,
गौतम नवलखा मुंबई से पढ़-लिखे हैं। उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र की पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता से जुड़ गए। इसके बाद कई आर्थिक व राजनैतिक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के साथ मानवाधिकार व सामाजिक न्याय के क्षेत्र में काम करने लगे। छत्तीसगढ़ और कश्मीर में उनके कामों के बाद उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता के क्षेत्र में पहचाने जाने लगे। उन्हें पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स नाम के संगठन से जुड़े रहने के लिए भी जाना जाता है। वह कश्मीर के इंटरनेशनल पीपुल्स ट्रिब्यूनल के संयोजक भी रह चुके हैं। लेकिन बाद में उनके कामों से जनता के भड़कने के आरोप लगाते हुए उन्हें कश्मीर में दाखिल होने से रोक दिया गया था। इसके बाद से छत्तीसगढ़ में ज्यादा सक्रिय हो गए थे। इसके अलावा वह दिल्ली में रहकर कई मोर्चों पर काम कर रहे थे। उन्हें नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के लिए काम करने के लिए भी जाना जाता है।
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