मुंबई। नए रियल एस्टेट कानून रेरा के क्रियान्वयन के बावजूद सात प्रमुख शहरों में करीब 4,64,300 करोड़ रुपये की 5.76 लाख आवासीय इकाइयों की आवास परियोजनाएं विलंब से चल रही हैं। यह कानून पिछले साल मई से प्रभाव में आया है। संपत्ति सलाहकार एनारॉक ने यह जानकारी दी है।
मुंबई में सबसे ज्यादा खाली मकान,
एनारॉक की रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही आवासीय इकाइयां 2013 या उससे पहले शुरू हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार मात्रा के हिसाब से 71% परियोजनाएं मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर) की हैं जबकि मूल्य के हिसाब से 78% परियोजनाएं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की हैं। एनारॉक के ये आंकड़े हाल में प्रॉपइक्विटी के आंकड़ों से अधिक बैठते हैं। प्रॉपइक्विटी की रिपोर्ट के अनुसार 3.33 लाख करोड़ रुपये की 4,65,555 आवासीय इकाइयां अपने देरी से चल रही हैं।
इस वजह से हो रही है देरी
एनारॉक के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, ‘‘परियोजनाओं में देरी, कुछ डेवलपर्स की धोखाधड़ी की गतिविधियों, भूमि विवाद की वजह से पिछले कई दशक से भारतीय रीयल एस्टेट क्षेत्र प्रभावित है। इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र की छवि धूमिल हो रही है।’’
पुरी ने कहा कि सरकार ने पिछले कुछ साल के दौरान इस क्षेत्र में पारदर्शिता के सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं। हालांकि पासा पलटने वाली रेरा जैसी नीतियों और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन के बावजूद इस क्षेत्र में परियोजना में विलंब की समस्या सुलझ नहीं पाई है।
जमीन के मालिकाना हक का बीमा नहीं करा रहे हैं डेवलपर,
रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट यानी रेरा में डेवलपर के लिए जमीन के टाइटल (मालिकाना हक) का बीमा कराना जरूरी है। लेकिन अभी तक बहुत कम डेवलपर्स ने यह बीमा कराया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बीमा से डेवलपर्स पर बोझ तो बढ़ेगा ही, घरों की कीमतें भी 150 से 200 रुपए प्रति वर्ग फुट तक बढ़ जाएंगी। जमीन का मामला राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए केंद्र सरकार द्वारा तैयार रेरा को हर राज्य को अपने यहां नोटिफाई करना है। लेकिन अभी तक किसी भी राज्य ने टाइटल इंश्योरेंस के प्रावधान को नोटिफाई नहीं किया है। हालांकि कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र ने कहा है कि वह जल्दी ही इसका नोटिफिकेशन जारी करेगा।
कौन भरेगा बीमा का खर्च-सबसे बड़ा सवाल,
हीरानंदानी ग्रुप के चेयरमैन सुरेंद्र हीरानंदानी के अनुसार सबसे बड़ा सवाल बीमा के खर्च का है। हो सकता है भविष्य में बीमा लेने वालों की संख्या बढ़ने पर प्रीमियम कम हो, लेकिन अभी तो यह काफी खर्चीला है। इसका असर घरों की कीमतों पर भी होगा। डेवलपर भले बाद में यह रकम खरीदारों से लें, लेकिन पहले तो उन्हें ही इसे चुकाना पड़ेगा। इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि टाइटल इंश्योरेंस में जोखिम का एक हिस्सा ही कवर होता है। सारे जोखिम कवर नहीं होते। लेकिन बीमा कंपनी एचडीएफसी एर्गो के चीफ अंडर राइटिंग ऑफिस अनुराग रस्तोगी का मानना है कि डेवलपर्स को लांग टर्म में इसके फायदों को समझना होगा। इस बीमा से खरीदारों में डेवलपर की विश्वसनीयता बढ़ेगी। डेवलपर्स की बॉडी नारेडको के प्रेसिडेंट निरंजन हीरानंदानी भी मानते हैं कि इससे खरीदार, डेवलपर, बैंक और संस्थागत निवेशक सबके सेंटिमेंट में सुधार होगा।
Comments
Post a Comment