(फाइल फोटो)
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में अहम दखल रखने वाली शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से अन्ना हजारे पर निशाना साधा है. सामना ने अपने शनिवाक के अंक में छपे संपादकीय में सवाल पूछा है कि किसानों तथा लोकपाल जैसे सवालों पर रामलीला मैदान में अनशन करने से अन्ना हजारे को क्या हासिल हुआ. इसके अलावा सामना के संपादकीय में यह भी कहा गया है कि अन्ना को दिल्ली जाकर क्या हासिल हुआ. सामना में लिखा है कि अन्ना की अवस्था लालकृष्ण आडवाणी जैसी हो गई है. अंतर सिर्फ इतना है कि आडवाणी मौन हो गए और अन्ना बोल रहे हैं. बोलने से कुछ हासिल नहीं होगा ऐसा आडवाणी को लगता है और बोलते रहने से भूखे रहने से सरकार सुनेगी इस भ्रम में अन्ना हैं.
सामना के संपादकीय में लिखा है, "किसानों तथा लोकपाल जैसे सवालों पर अन्ना हजारे ने रामलीला मैदान पर अनशन शुरू किया. अनशन अनिश्चितकाल के लिए था सीएम फडणवीस की मध्यस्थता से सातवें दिन ही इसे खत्म कर दिया गया. मुख्यमंत्री फडणवीस की मध्यस्थता सफल हुई ऐसी खबरें भी आई हैं. मतलब निश्चित क्या हुआ? अलग-अलग मांगों को पूरा करने का आश्वासन वाला प्रधानमंत्री के सिग्नेचर का पत्र सीएम फड़नवीस ने अन्ना को सौंप दिया, और अन्ना का आंदोलन खत्म हो गया, मतलब सरकार ने सभी मांगें तत्वतः मान लीं, तत्वतः मतलब क्या? यह सवाल ही है."
संपादकीय में आगे लिखा है, "6 महीने में मांगें मंजूर नहीं हुई तो दोबारा अनशन पर बैठूंगा ऐसा अन्ना हजारे ने कहा है. रामलीला मैदान के अनशन से अन्ना को क्या हासिल हुआ, सिर्फ अन्ना का वजन 6 से 7 किलो घटा. इस आंदोलन से हाथ में कुछ नहीं आया, वैसे पिछले आंदोलन से भी क्या हासिल हुआ था? इसका खुलासा कोई करेगा क्या?"
पिछले आंदोलन की याद करते हुए संपादकीय में लिखा है, "देश में लोकपाल और विभिन्न राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए यह मांग कल भी थी आज भी है और 6 माह के बाद रहने वाली है. कल के आंदोलन में जो लोग "अन्ना जिंदाबाद" के नारे लगा रहे थे और लोकपाल चाहिए ऐसा कह रहे थे सभी लोग दिल्ली और विभिन्न राज्यों में सत्तासीन हैं. अन्ना का पिछला आंदोलन भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए था, कांग्रेस का शासन भ्रष्ट और अनैतिक था. ऐसा कह रहे थे. आज के सत्ताधारी राजा हरिश्चंद्र के वंशज है क्या? "मैं अन्ना हुं" इस तरह गांधी टोपी लगाने वाले अन्ना की अवस्था लालकृष्ण आडवाणी जैसी हो गई है. अंतर सिर्फ इतना है कि आडवाणी मौन हो गए और अन्ना बोल रहे हैं. बोलने से कुछ हासिल नहीं होगा ऐसा आडवाणी को लगता है तथा बोलते रहने से भूखे रहने से सरकार सुनेगी इस भ्रम में अन्ना हैं. इस भ्रम का कद्दू रामलीला मैदान में फूट गया."
अन्ना पर हमला बोलते हुए सामना के संपादकीय में आगे लिखा है, "महाराष्ट्र के लोकायुक्त मिस्टर इंडिया की तरह है तथा सेवानिवृत्त प्रशासकीय अधिकारियों के लिए गाड़ी घोड़े का इंतजाम करने तक ही इस पद का महत्व बने रहने से भ्रष्टाचार के चूहे मंत्रालय कुतर रहे हैं. अन्ना ने सात दिनों तक अनशन किया. लेकिन लोगों का समर्थन नहीं मिला. भीड़ छंट गयी है. मीडिया ऐसी टिप्पणी कर रहा था. पिछली बार भीड़ थी और मीडिया ने माहौल गर्म कर रखा था. इस बार मीडिया ने अन्ना से जी चुरा लिया है. अन्ना का आंदोलन सफल नहीं होने देने का यह सभी का एजेंडा था. इसलिए दिल्ली में भी बड़े मंत्री तथा राजनीतिज्ञ अन्ना से मिलने नहीं गए. सातवें-आठवें दिन अन्न का गला जब सूखने लगा तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को बुलाया गया. मुख्यमंत्री फडणवीस की मध्यस्थता से अनशन टूटना था. उन्हीं के तत्वतः आश्वासनों पर विश्वास करना था तो फिर रामलीला मैदान के बजाय रालेगण सिद्धि में आंदोलन करने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी."
अंत में संपादकीय में अन्ना के गांव लौटने पर खुशी जाहिर करते हुए लिखा है, "नरेंद्र मोदी या राजनाथ सिंह रामलीला मैदान पर जाएंगे, यह उम्मीद नहीं थी परंतु केंद्र का कोई कैबिनेट मंत्री जाएगा और अनशन टूटेगा ऐसा लग रहा था, लेकिन वैसा हुआ नहीं, अगली तारीख देखकर अनशन तोड़ दिया है. भ्रष्टाचारी वैसे ही हैं और किसानों की मौत बढ़ रही है. अन्ना का अनशन टूट गया और वह सही सलामत गांव लौट आए, इसमें ही हमें भी तत्वतः खुशी है."।
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