नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का बिगुल फुंक चुका है और चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। लेकिन चुनाव से ठीक पहले एक एनजीओ ने बड़ा दावा किया है, जिसमे कहा गया है कि इस बार 18 लाख मुसलमान मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब हैं। दिल्ली की इस एनजीओ सेंटर फॉर रिसर्च एंड डिबेट्स इन डेवेलेपमेंट पॉलिसा का दावा है कि या तो इन मुस्लिम मतदाताओं का नाम ही हाल ही में जारी की गई मतदाता लिस्ट से गायब है। इसकी दो वजह हो सकती एक या तो उनके नाम ही लिस्ट में नहीं है या फिर उन्हे वोटर आईडी कार्ड जारी नहीं किया गया है।
शुरू किया अभियान,
इस एनजीओ के मुखिया अबूसालेह शरीफ जोकि जाने माने अर्थशास्त्री और जस्टिस सचर कमेटी के सदस्य हैं, उन्होंने अब इसके खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है ताकि इस वोटर लिस्ट को सही किया जा सके। रिसर्च एसोसिएट और सीआरडीडीपी के सीओओ खालिद सैफुल्ला का कहना है कि उन्होंने 16 लाख ऐसी कर्नाटक विधानसभा के संसदीय क्षेत्र की पहचान की है जिसमे 1.28 लाख लोगों के नाम लिस्ट से गायब हैं। इस नंबर के आधार पर वह इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि 224 संसदीय क्षेत्रों में इसकी संख्या 15 लाख से अधिक हो सकती है।
बड़ी संख्या में मुस्लिम वोटर गायब,
दरअसल जब यह एनजीओ 2011 की जनगणना के आधार पर इस बार के मतदाताओं की 28 फरवरी 2018 से तुलना कर रही थी, तो उसे इस बात की जानकारी मिली की बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं के नाम इस लिस्ट से गायब हैं। खालिद सैफुल्ला ने बताया कि 2011 की जनगणना के आधार पर हमे पता चला कि शिवाजी नगर संसदीय क्षेत्र में 4.3 फीसदी सिंगल हाउसहोल्ड हैं जबकि यहां कुल 18453 मुस्लिम घर हैं। लेकिन हमे पता चला है कि 8900 से अधिक घरों में सिर्फ एक ही वोटर कार्ड बना है, जोकि कुल मुस्लिम आबादी का 40 फीसदी है।
लोगों के पास गलत जानकारी,
इस जानकारी के बाद एनजीओ ने एक वेबसाइट का निर्माण किया है जिसका नाम missingmuslimvoters.com है और इसका एंड्रॉयड ऐप भी बनाया गया है, जिससे कि मुस्लिम युवकों को एकजुट करके उन्हें शिक्षित किया जा सके। सैफुल्ला बताते हैं कि लोगों को यह लगता है कि एक बार उनका नाम रजिस्टर हो जाने और चुनाव की तारीख का ऐलान होने के बाद नाम में बदलाव नहीं किया जा सकता है और ना ही वोटर लिस्ट में अपना नाम जोड़ा जा सकता है। लेकिन यह गलत है, इसमे बदलाव नामांकन के आखिरी दिन तक किया जा सकता है।
Comments
Post a Comment